नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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- "लेकिन वे थे कि क़तार में खड़े थे
- चट्टानी सपनों के सीनों पर चट्टानें थीं
- चट्टानों से टकराना जारी था, जारी था
- चट्टानें थीं, चट्टानी सीने थे, चट्टानी टकराहटें थीं
- मैं था, चार दीवारें थीं "
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